उत्तर प्रदेश के लखनऊ की रहने वालीं उषा गुप्ता के लिए कोविड की दूसरी लहर कहर बनकर टूटी। वे अपने पति के साथ कोरोना की चपेट में आ गईं। दोनों करीब एक महीने तक अस्पताल में भर्ती रहे। उषा तो ठीक हो गईं, लेकिन कोरोना ने उनके पति की जान ले ली। 87 साल की उम्र में उन पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। हालांकि उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। एक महीने बाद तय किया कि अब वे अपना बाकी जीवन जरूरतमंदों की सेवा में खपाएंगी।
इसी साल जुलाई में उन्होंने होममेड पिकल्स और चटनी का काम शुरू किया। वे सोशल मीडिया के जरिए देशभर में लोगों तक अपना प्रोडक्ट भेज रही हैं। एक महीने के भीतर 200 से ज्यादा बॉटल्स बिक गए हैं। इससे जो भी कमाई होती है, उसे वे कोविड मरीजों के लिए डोनेट कर देती हैं। उषा गुप्ता के पति यूपी गवर्नमेंट में इंजीनियर थे। जबकि उनकी तीन बेटियां डॉक्टर हैं और दिल्ली में सेटल्ड हैं।
कोरोना ने ज्यादातर लोगों की जिंदगियां तबाह कर दी
उषा गुप्ता बताती हैं कि पति की मौत के बाद जिंदगी उदास सी हो गई थी। अब अपने लिए करने को कुछ बचा नहीं था। अस्पताल में जब एडमिट थी तो लोगों को कोविड से जूझते देखा था। कोई ऑक्सीजन के लिए तड़प रहा था तो कोई इलाज के लिए। हर तरफ दहशत का माहौल था। कई लोगों की जिंदगियां कोरोना ने तबाह कर दी थी। मुझे लगा कि अब आगे की लाइफ ऐसे जरूरतमंदों की मदद में खपानी चाहिए। मेरी नातिन डॉक्टर राधिका बत्रा गरीबों की मदद के लिए एक NGO चलाती है। मैंने उससे बात की और अपनी इच्छा बताई, लेकिन नातिन ने सीधे कैश लेने से मना कर दिया। अब मैं सोच में पड़ गई कि क्या करूं। फिर मेरी नातिन ने ही आइडिया दिया कि आप अचार अच्छा बनाते हो तो क्यों न इसकी ही मार्केटिंग की जाए। इसकी कमाई से आप डोनेट भी कर देना और आपका भी मन लगा रहेगा।
उषा गुप्ता को यह आइडिया पसंद आया। हालांकि इस उम्र में पिकल्स का काम करना उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं था। फिर भी उन्होंने कोशिश की। उनके इस छोटे से बिजनेस का नाम रखा गया Pickled With Love, मार्केटिंग और रिसोर्सेज का काम उनकी नातिन ने संभाल लिया। डॉक्टर राधिका बत्रा ने अचार बनाने के सामान मंगवाए। बॉटल्स ऑर्डर किए और बढ़िया सा लोगो बनवा लिया। यानी एक तरह से सेटअप जमा दिया। इसके बाद उषा गुप्ता ने अपना काम शुरू किया। उन्होंने तीन तरह के अचार बनाए। मार्केटिंग की शुरुआत रिश्तेदारों से हुई और देखते ही देखते एक महीने के भीतर 200 से ज्यादा बॉटल्स बिक गए। इसके बाद दिल्ली, मध्य प्रदेश, केरल सहित कई राज्यों से ऑर्डर आने लगे।
आमों को काटने और तैयार करने में उनकी नातिन मदद करती हैं। बाकी का काम वे खुद करती हैं। वे एक बार में 10 किलो आम की चटनी और अचार बनाती हैं। जब एक बार यह काम पूरा हो जाता है, तो फिर से 10 किलो आम लेकर चटनी और अचार बनाने में लग जाती हैं। 200 ग्राम के एक बॉटल अचार की कीमत उन्होंने 150 रुपए रखी है। फिलहाल उषा गुप्ता तीन तरह के अचार और चटनी की मार्केटिंग करती हैं। सोशल मीडिया और वॉट्सऐप ग्रुप के जरिए लोग उनसे कॉन्टैक्ट करते हैं और वे एक डिब्बे में अचार पैक करके उनके घर भेज देती हैं।
65 हजार से ज्यादा जरूरतमंदों की मदद कर चुकी हैं
उषा गुप्ता बताती हैं कि अब तक अचार की मार्केटिंग से जो पैसे मिले हैं, उससे करीब 65 हजार गरीबों को हमने भोजन कराया है। हम देश के कई राज्यों में ऐसे लोगों की पहचान कर रहे हैं, जिन्हें मदद की जरूरत है, जो भूखे हैं। इसमें कुछ बाहरी संस्थान भी हमारी मदद करते हैं।
वे कहती हैं कि कई बार काम करते वक्त थक जाती हूं। बॉडी में दर्द होने लगता है, लेकिन फिर भी लगी रहती हूं। कई बार पेन किलर खाकर भी काम करना पड़ता है। क्योंकि यह बस बिजनेस नहीं है, इससे कई लोगों की उम्मीदें बंधी हैं। इसलिए मेरी कोशिश है कि जब तक शरीर में जान है मदद करती रहूं।
उषा गुप्ता की बेटी डॉक्टर शैली बत्रा दिल्ली के एक हॉस्पिटल में गायनेकोलॉजिस्ट डिपार्टमेंट की हेड हैं। वे बताती हैं कि इस उम्र में मां की जीवटता को देखकर हमें हिम्मत मिलती है। हम लोग पिछले एक साल से लोगों की मदद कर रहे हैं। कई गरीबों को हमने राशन पैकेट दिए हैं। मणिपुर बॉर्डर पर हमने एक कोविड सेंटर बनाने में भी मदद की है। वहां हम लगातार मास्क, पीपीई किट और दवाइयां भेजते रहते हैं।
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राजस्थान के बाड़मेर जिले की रहने वाली रूमा देवी, नाम जितना छोटा काम उतना ही बड़ा। जिसके सामने हर बड़ी उपलब्धि छोटी पड़ जाए। 4 साल की थीं तब मां चल बसीं, पिता ने दूसरी शादी कर ली और चाचा के पास रहने के लिए छोड़ दिया। गरीबी की गोद में पल रही रूमा को हंसने-खेलने की उम्र में खिलौनों की जगह बड़े-बड़े मटके मिले, जिन्हें सिर पर रखकर वो दूर से पानी भरकर लाती थीं। 8वीं में पढ़ाई छूट गई और 17 साल की उम्र में शादी।
पहली संतान हुई वो भी बीमारी की भेंट चढ़ गई। रूमा के सामने मुश्किलों का पहाड़ था, सबकुछ बिखर गया था लेकिन उन्होंने हौसले को नहीं टूटने दिया। खुद के दम पर गरीबी से लड़ने की ठान ली और घर से ही हैंडीक्राफ्ट का काम शुरू किया। आज वे अपने आप में एक फैशन ब्रांड हैं। देश-विदेश में ख्याति है और 22 हजार महिलाओं की जिंदगी संवार रही हैं।