Uncategorized

गुवाहाटी के प्रसिद्द कामाख्या मंदिर की अर्धनिर्मित सीढियों में छिपा है एक गहरा राज, जिसे आजतक कोई नही जान पाय ..

माता की शक्ति में जो लोग विश्वास करते हैं वह यहां आकर अपने को धन्य मानते हैं। जिन्हें ईश्वरीय सत्ता पर यकीन नहीं है वह भी यहां आकर माता के चरणों में शीश झुका देते हैं और देवी के भक्त बन जाते हैं। यह स्थान है कामरूप जिसे वर्तमान में असम के नाम से जाना जाता है। असम के नीलांचल पर्वत पर समुद्र तल से करीब 800 फीट की ऊंचाई पर यहां देवी का एक मंदिर है जिसे कामख्या देवी मंदिर कहते हैं। देवी के 51 शक्तिपीठों में से यह भी एक है।

कामाख्या देवी का रहस्यमय मंदिर पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार देवी सती अपने पिता द्वारा किये जा रहे महान यज्ञ में शामिल होने जा रही थी तब उनके पति भगवान शिव ने उन्हें वहां जाने से रोक दिया। इसी बात को लेकर दोनों में झगड़ा हो गया और देवी सती बिना अपने पति शिव की आज्ञा लिए हुए उस यज्ञ में चली गयी। जब देवी सती उस यज्ञ में पहुंची तो वहां उनके पिता दक्ष प्रजापति द्वारा भगवान शिव का घोर अपमान किया गया।अपने पिता के द्वारा पति के अपमान को देवी सती सहन नहीं कर पाई और यज्ञ के हवन कुंड में ही कूदकर उन्होंने अपनी जीवन लीला समाप्त कर दी।

जब ये बात भगवान शिव को पता चली तो वो बहुत ज्यादा क्रोधित हुए और उन्होंने दक्ष प्रजापति से प्रतिशोध लेने का निर्णय किया और उस स्थान पर पहुंचे जहां ये यज्ञ हो रहा था।भगवान शिव ने अपनी पत्नी के मृत शरीर को निकालकर अपने कंधे में रखा और अपना विकराल रूप लेते हुए तांडव शुरू किया। भगवान शिव के गुस्से और माता सती के मृत शरीर के प्रति मोह को देखते हुए भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र छोड़ा जिससे देवी के शरीर के 52 टुकड़े हुए जो कई स्थानों पर गिरे जिन्हें शक्ति पीठों के नाम से जाना जाता है।माना जाता है कि भगवान विष्णु ने जब देवी सती के शव को चक्र से काटा तब जिस स्थान पर उनकी योनी कट कर गिरी थी उसी स्थान को कामाख्या महापीठ के नाम से जाना जाने लगा |

इसी मान्यता के कारण इस स्थान पर देवी की योनी की पूजा होती है। प्रत्येक वर्ष तीन दिनों के लिए यह मंदिर पूरी तरह से बंद रहता है जिसे यहां अम्बुवासी मेले के रूप में जाना जाता है। माना जाता है कि माँ कामाख्या इस बीच रजस्वला होती हैं। और उनके शरीर से रक्त निकलता है। इस दौरान शक्तिपीठ की अध्यात्मिक शक्ति बढ़ जाती है। इसलिए देश के विभिन्न भागों से यहां तंत्रिक और साधक जुटते हैं। आस-पास की गुफाओं में रहकर वह साधना करते हैं।चौथे दिन माता के मंदिर का द्वार खुलता है। माता के भक्त और साधक दिव्य प्रसाद पाने के लिए बेचैन हो उठते हैं। यह दिव्य प्रसाद होता है लाल रंग का वस्त्र जिसे माता राजस्वला होने के दौरान धारण करती हैं। माना जाता है वस्त्र का टुकड़ा जिसे मिल जाता है उसके सारे कष्ट और विघ्न बाधाएं दूर हो जाती हैं।

कामाख्या देवी मन्दिर के अधूरी सीढियों का रहस्य
अगर आप कामाख्या देवी मन्दिर के दर्शन के लिए गये होंगे तो आपने देखा होगा की मन्दिर की सीढियाँ आज भी अधूरी है उसका निर्माण नहीं हुआ है इसके पीछे का जो रहस्य हो वो हम आपको बताने जा रहे है दरअसल कहा जाता है कि नरक नाम का राक्षस देवी कामाख्या से प्रेम करता था और उनसे विवाह करता था। ये जान कर देवी ने राक्षस के समक्ष एक शर्त रख दी की यदि वो सुबह होने से पहले नीलाचल की पहाड़ी के नीचे से मंदिर तक सीढ़ी का निर्माण कर देगा तो देवी उससे विवाह कर लेंगी।राक्षस नरक ने देवी के इस शर्त को स्वीकार किया और काम शुरू कर दिया |

तब देवी कामाख्या को लगा की वो इस कार्य का निर्माण पूरा कर लेगा तब उन्होंने एक युक्ति द्वारा कौए को मुर्गा बना दिया और उसे भोर होने से पहले ही रात्री समाप्ति की सुचना देने को कहा. मुर्गे ने ऐसा ही किया तो असुर नरकासुर को लगा की वह अपना कार्य पूरा नहीं कर पाया है लेकिन जब उसे असलियत का पता चला तो वह क्रोधित हो गया और मुर्गे का पीछा कर उसे मार डाला.जिस स्थान पर उस मुर्गे को मारा गया वह आज कुकुराकता के नाम से विख्यात है. बाद में असुर नरकासुर का वध भगवान विष्णु ने कर दिया.

Related Articles

135 Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button