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अपने ही भाई से क्यों विवाह करना चाहती थी शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी, जानिए रोचक वजह….

प्राचीन काल में राजा महाराजाओं का

युग हुआ करता था उस समय राक्षस और देवताओं के बीच में लगातार युद्ध होते रहते थे। उन लड़ाइयों में कभी राक्षस जीत जाते तो कभी देवता जीत जाते थे। हमेशा से ही राक्षसों की यह पहल रहती थी कि वे देवताओं को हानि पहुंचा कर स्वर्ग पर अपना कब्जा जमा ले। स्वर्ग पर राज करने की इच्छा के साथ ही राक्षस हमेशा से ही देवताओं के साथ युद्ध करते आए हैं। राक्षसों के गुरु शंकराचार्य बहुत ही शक्तिशाली और तपस्वी ऋषि मुनि हुआ करते थे। गुरु शंकराचार्य की शक्ति के कारण दिन-ब-दिन राक्षसों की शक्ति बढ़ती जा रही थी और गुरु शंकराचार्य ने भगवान शिव की उपासना से मृत संजीवनी विद्या के बारे में भी सीख लिया था। नहीं देख पाएंगे ये वीडियो कमज़ोर दिलवाले यहाँ निचे ⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️

मृत संजीवनी विद्या के द्वारा

ऋषि मुनि शंकराचार्य अमृत हुए राक्षसों को पुनर्जीवित कर दिया करते थे जिसकी वजह से राक्षसों की शक्ति दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही थी। इस बात से देवता बहुत ही परेशान हो चुके थे। इस बात को लेकर सारे देवता अपने गुरु बृहस्पति के पास गए और उन्होंने कुछ तरकीब निकालने की सोची। देवताओं के गुरु बृहस्पति के पुत्र कच को कहा कि वह गुरु शंकराचार्य के पास जाकर मृत संजीवनी विद्या सीख ले। देवताओं को पता था कि यह काम बहुत ही मुश्किल होगा लेकिन फिर भी कच को उन्होंने गुरु शंकराचार्य के पास भेज दिया। बृहस्पति के पुत्र कच बहुत ही तेजवान थे।

गुरु शंकराचार्य की पुत्री देवयानी

बहुत ही सुंदर और बुद्धि मती थी जब कच्छ गुरु शंकराचार्य के पास विद्या सीखने आया तो देवयानी कच को देख कर उन पर मोहित हो बैठी। जब राक्षसों को पता चला कि देवताओं के गुरु का पुत्र कच्छ ऋषि मुनि शंकराचार्य से विद्या प्राप्त करने आया है तो उन्हें समझते देर ना लगी कि वह गुरु शंकराचार्य से मृत संजीवनी विद्या सीखने आया है। यह बात जानकर राक्षसों ने आपस में ही तरकीब निकाली और व्रहस्पति के पुत्र को चुपके से मार देने की सोची। उन्होंने इस कार्य को अंजाम देने के लिए एक रात को जाकर घेर लिया और उसे मार दिया। जब देवयानी को यह बात पता चली तो वह अपने पिता के पास जा पहुंची और शंकराचार्य से उसे अपने जीवित करने को कहा। आइये देखे इस वीडियो में यहाँ निचे ⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️

गुरु शंकराचार्य की पुत्री के प्रेम को

समझ गए और उन्होंने देवयानी के आग्रह पर कच्छ को पुनर्जीवित कर दिया। इस तरह राक्षसों ने कच को दोबारा से मार गिराया और उसे जलाकर राख कर दिया। कच्छ के मृत शरीर की राख को जल में मिलाकर गुरु शंकराचार्य को पिला दिया। देवयानी ने जब कच को अपने आसपास नहीं पाया तो उसमें जाकर पिता से आग्रह किया और शंकराचार्य ने अपने तपोबल से पता लगाया।

कच्छ का आवाहन करने पर

उन्हें उनके पेट में से ही कच्छ की आवाज सुनाई भी उन्हें पता था कि यदि वह उसे अपने पेट से निकालेंगे तो वह खुद मृत हो जाएंगे। इसलिए उन्होंने कच्छ की आत्मा को मृत संजीवनी विद्या का ज्ञान दिया और कच्छ शंकराचार्य के पेट को फाड़ कर बाहर निकल आया इसके बाद गुरु शंकराचार्य की मृत्यु हो गयी। लक्ष्मी गुरु दक्षिणा के रूप में गुरु शंकराचार्य को पुनर्जीवित कर अपना फर्ज पूरा किया।

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