हमारी संवेदना की कसौटी है केरल की राष्ट्रीय त्रासदी
केरल आज बाढ़ की भयंकर त्रासदी झेल रहा है। यह विचारवान और व्यवस्थित जीवन-दृष्टि रखने और जीनेवालांे का प्रदेश है; अनुपम मिश्र के शब्दों में कहूं तो केरल का तैरने वाला समाज डूब रहा है! क्या इसके लिए अकेले केरल ही जिम्मेदार है या हम सब इस तबाही को आमंत्रित करने वालों में शामिल हैं? प्रकृति अपने रौद्र रूप में आकर हमें सबक सिखा रही है। गम्भीर चेतावनी के साथ चेता रही है कि हमारे सहज जीवन-प्रवाह को बाधित किये बिना हमारे सहयोग और साहचर्य के साथ जीना फिर से शुरू करो, अन्यथा सृष्टि-संहार के भागी बनोगे।
भारत के सबसे खूबसूरत भू भागों में एक केरल आज बाढ़ की भयंकर त्रासदी झेल रहा है। बच्चे, बूढ़े, औरतें, जवान सभी जल प्रलय की स्थिति में अपनी आंखों से अपनी तबाही देख रहे हैं और मानसिक-शारीरिक यातनाएं झेलने को मजबूर हुए हैं।
केरल भारत का सबसे पहला पूर्णतः साक्षर प्रदेश है। बौद्धिक रूप से देश का अव्वल प्रदेश है। देश के प्रशासन में केरल की प्रतिभा का व्यापक योगदान है। विचारवान और व्यवस्थित जीवन-दृष्टि रखने और जीने वालांे का प्रदेश है; लेकिन, अनुपम मिश्र के शब्दों में कहूं तो केरल का तैरने वाला समाज डूब रहा है! क्या इसके लिए जिम्मेदार है अकेला केरल या हम सब इस तबाही को आंमत्रित करने वालों में शामिल हैं?
महात्मा गांधी ने कहा था कि इस धरती पर जीने वाले सबकी भूख मिटाने की इसके पास क्षमता है, लेकिन एक लोभी के लोभ को पूरा कर पाना इसके लिए सम्भव नहीं है। क्या हम सब भयंकर रूप से लोभी नहीं हो चुके हैं ? ऐशो आराम के लोभी, अपना वर्चस्व अपने से कमजोरों पर लादने के लोभी, प्रकृति ने जितनी उदारता से हमें दिया है, उतनी ही, बल्कि उससे भी अधिक कृपणता के साथ, प्रकृति के अकूत खजानों को लूटकर अपने कब्जे में लेने के लोभी, अक्षय-प्रकृति का क्षय करते हुए विकास की तथाकथित आखिरी मंजिल तक सबसे पहले पहुंचने की अंतहीन इच्छा के लोभी, जिसे ‘हिन्दस्वराज्य’ में बापू ने ‘‘पागल अंधी दौड़’’ कहा था, उस तथाकथित विकास की मंजिल के शिखर पर जल्दी-से-जल्दी पहुंचने के लोभी! और, लोभवश, हमने हर-भरे जंगलों को काट डाला, धरती के गर्भ मंे लाखों-करोड़ों वर्षों में निर्मित एवं संचित, पर्यावरण का संतुलन बनाये रखने वाले, खनिज पदार्थों को खोद कर निकाल लिया और धरती के गर्भ को खोखला कर डाला। हमारी और जीव-जन्तुओं सहित, पेड़-पौधों की, सबकी प्यास बुझाने वाली कल-कल करती निरन्तर बहती निर्मल जलधाराओं को, नदियों, झीलों को अपने कब्जे में बनाये रखने के लिए उन्हें बड़े-बड़े बांधों से बाधित कर डाला और-तो-और नदियों-झीलों-तालाबों को सुखाकर उन्हें निर्वासित कर दिया और वहाँ अपने वैभव के विराट का सृजन कर डाला। आज वही प्रकृति अपने रौद्र रूप में आकर हमें सबक सिखा रही है। कह रही है, और गम्भीर चेतावनी के साथ चेता रही है,कि हमारे सहज जीवन-प्रवाह को बाधित किये बिना हमारे सहयोग और साहचर्य के साथ जीना फिर से शुरू करो, अन्यथा सृष्टि-संहार के भागी बनोगे।
केरल की त्रासदी मात्र केरल की नहीं, राष्ट्रीय त्रासदी है, जो हमें भविष्य के लिए तो चेता ही रही है, वर्तमान के लिए भी उदात्त चित्त से, मानवीय संवेदना के साथ, पीड़ित केरलवासियों को सहायता पहुँचाने के लिए प्रेरित कर रही है। अपने आपको तमाम तरह की क्षुद्र सीमाओं से मुक्त करके विराट मानवीय भूमिका में पीड़ितों की पीड़ा महसूस करते हुए उनकी मदद में तन-मन-धन एवं हृदय-भाव से उनके साथ खड़े होने का आवाहन कर रही है। यह कसौटी की घड़ी है हमारी मानवीय संवेदना की!