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जानिए भोले बाबा के ऐसे चमत्कारी मंदिर के बारे में ,जो अपने आप ही दो बार हो जाता है ग़ायब ..

सावन के महीने की शुरुआत होने वाली है

हर तरफ़ शिवभक्त भगवान शिव को प्रसन्न करने की तैयारियों में लगे हुए हैं। कोई काँवर ले जाने की तैयारी में लगा हुआ है तो कोई भगवान शिव की विशेष पूजा की तैयारी कर रहा है। भारत में भगवान शिव के कई ऐसे प्राचीन और चमत्कारी मंदिर हैं, जिनके बारे में लोग जानकर हैरान रह जाते हैं। आपने भी भगवान शिव के कई मंदिरों का दर्शन किया होगा। लेकिन आज हम आपको भगवान शिव के ऐसे एक चमत्कारी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी विशेषता जानकर आप सोच में पड़ जाएँगे।

जाना जाता है ग़ायब मंदिर के नाम से भी

जी हाँ हम आपको भगवान शिव के

एक ऐसे अद्भुत मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो दिन में दो बार ग़ायब हो जाता है। इसी वजह से यह मंदिर शिव भक्तों के लिए हमेशा से ही आकर्षण का केंद्र रहा है। यहाँ जो भी भक्त आता है मंदिर को अपनी आँखों से दिन में दो बार ग़ायब होते हुए देखता है। आपको बता दें यह मंदिर गुजरात के बड़ोदरा से कुछ दूरी पर जंबूसर तहसील के कावी कंबोई गाँव में स्थित है। इस शिव मंदिर को स्तंभेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। इसे कई लोग ग़ायब मंदिर के नाम से भी जानते हैं।

ज्वार-भाटा की वजह से समुद्र में समा जाता है मंदिर

आँखों से ग़ायब होने के कुछ समय बाद ही यह मंदिर

पुनः अपने स्थान पर नज़र भी आने लगता है। अब आप सोच रहे होंगे कि आख़िर यह कैसे होता होगा। तो आपको बता दें यह किसी चमत्कार की वजह से नहीं बल्कि समुद्री ज्वार-भाटा की वजह से होता है। दरअसल यह मंदिर समुद्र के किनारे स्थित है। जब भी समुद्र में ज्वार-भाटा आता है तो यह मंदिर पूरा का पूरा समुद्र में समा जाता है। इसी वजह से इस मंदिर का दर्शन उसी समय किया जा सकता है जब समुद्र में ज्वार कम हो। ऐसा आज से नहीं बल्कि सदियों से होता आ रहा है। ज्वार के समय समुद्र का पानी मंदिर में आता है और भगवान शिव का अभिषेक करके पुनः वापस लौट जाता है।

आपको जानकर और भी हैरानी होगी कि यह घटना

प्रतिदिन सुबह और शाम को होती है। अरब सागर के मध्य कैम्बे तट पर स्थित इस मंदिर के दर्शन के लिए सागर के सामने हज़ारों भक्तों की भीड़ लगी रहती है। स्कंदपुराण में इस मंदिर के निर्माण के बारे में भी बताया गया है। इसके अनुसार राक्षस ताड़कासुर ने अपनी कठोर तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया था। उसने भगवान शिव से वरदान माँगा कि उसे कोई और नहीं बल्कि भगवान शिव का पुत्र ही मार सकेगा और वह भी केवल 6 दिन की आयु का। भगवान शिव ने उसे यह वरदान दे दिया।

कार्तिकेय ने सागर तट पर करवाया मंदिर का निर्माण

भगवान शिव से वरदान मिलते ही ताड़कासुर

हाहाकर मचाने लगा। देवताओं और ऋषि-मुनियों को आतंकित करने लगा। थक-हारकर देवता भगवान शिव की शरण में पहुँचे। शिव-शक्ति से श्वेत पर्वत के कुंड में पुत्र कार्तिकेय की उत्पत्ति हुई। इनके 6 मस्तिष्क, 4 आँखें, 12 हाथ थे। कार्तिकेय ने केवल 6 दिन की आयु में ताड़कासुर का वध किया था। जब कार्तिकेय को यह पता चला की ताड़कासुर भगवान शिव का भक्त था तो वो काफ़ी दुखी हुए। भगवान विष्णु ने कार्तिकेय से कहा कि वो वधस्थल पर शिवालय बनवा दें, इससे उनके मन को शांति मिलेगी। कार्तिकेय ने उसके बाद सागर तट पर इस मंदिर का निर्माण करवाया।

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