कभी भी भूल से भी न करे अपने पितरो को इन दिनों तर्पण नही तो उठानी पड़ सकती है हानि

दोस्तों आज हम आपको इस लेख में ऐसी जानकारी देने जा रहे है जिसके बारे में जाना आपके लिए बहुत ही आवश्यक है ! दोस्तों 20 सितम्बर से पितरो का श्राद्ध आरम्भ हो गया है ! ये 16 दिन जो श्रद्धा पूर्वक किया जाये उसे ही श्राद्ध कहा जाता है ! श्रद्धा शब्द में श्र यानि सत्य और ध्य यानि धारण करना शामिल है ! सधारण भाषा में कहा जाये सत्य को धारण करना है ! ज्योतिष में तृतीय उपनिषद के अनुसार मिटटी से निर्मित शरीर के विभिन्न तत्वों का मृत्यु के उपरांत ब्रह्मण्ड में विलय हो जाता है ! परन्तु मोह के धागे नही छुटते है मृत्यु के बाद भी माया को मोह अतरिक होता है ! यह प्रेम ही उन्हें धरती पर अपने वंशजो के पास खिचता है !
क्या होता है श्राद्ध पक्ष :-
अश्विन कृष पक्ष के 16 दिनों में प्रैक्ध से लेकर अमावस्या तो यमराज पितरो को मुक्त कर देते है ! पितर अपने- अपने हिस्से का ग्राश लेने के लिए अपने- अपने वंशजो के पास आते है जिससे उन्हें आत्मिक शांति प्राप्त होती है ! ज्योतिष गढ़ना के अनुसार जिस तिथि में दादा – दादी , पिता आदि परिजनों का निधन होता है ! उन्ही तिथि अनुसार उन्ही 16 दिनों में उसी तिथि पर उनका श्राद्ध किया जाता है तिथि के अनुसार श्राद्ध करने से पित्री लोक में भ्रमण करने से मुक्ति मिलकर पूर्वजो को मोक्ष प्राप्त होता है ! पितरो की आत्म की शांति के लिए श्रीमद भागवत गीता या भागवत पुरान का पाठ अति उत्तम माना जाता है !
क्यों नही किये जाते पित्री पक्ष में शुभ कार्य :-
ज्योतिष विज्ञान में नवग्रह में सूर्य को पिता व चंद्रमा को माँ का परिये माना गया है ! जिस तरह चन्द्रग्रहण या सूर्य ग्रहण लगने पर कोई भी शुभ कार्य का सुभारम्भ वर्जित होता है वैसे ही पित्री पक्ष में भी माता-पिता , दादा-दादी के श्राद्ध के कारण कार्य को प्रारम्भ को अशुभ माना गया है !
श्राद्ध को कहते है महापर्व :-
हिन्दू धर्म की मान्यताओ के अनुसार अश्विन महा के कृष पक्ष से अमवस्या तक अपने पितरो के श्राद्ध की पम्परा है ! यानि के 12 माह के मध्य में 6 माह भाद्र पक्ष की पूर्णिमा से यानी आखरी दिन से 7 वे माह अश्विन के प्रथम दिनों में यह पित्रिक पक्ष का यह माह पर्व मनाया जाता है ! इसे महापर्व इसलिए भी कहा जाता है क्योकि नवरात्र 9 दिन के होते है ! गणेश भी 7 से 9 दिन विर्जित होते है किन्तु श्राद्ध 16 दिनों तक मनाया जाता है ! जो तिथियो पर मनाये जाने के लिए है !
क्यों जरुरी है श्राद्ध करना :-
शास्त्रों में भी कहा गया है इस सीधे खड़े होने के रीढ़ की हड्डी का मजबूत होना बहुत जरुरी है जो शरीर के मध्यम भाग में स्थित है जिसके चलते है हमारी शरीर के एक पहचान मिलती है यह हमारी मजबूत बनी रहे उसके लिए हम अपने पूर्वजो को को अवश्य याद करे और श्राद्ध कर्म के रूप में अपना धन्यवाद दे !
क्या होते है पितर :-
पितरो का अर्थ पितृ या श्रेष्ठ जन होता है !पुत्र्वेग है जो न किये अपने कार्यो से अपने पिता की रक्षा करता है ! पूत का अर्थ पूरा करना है और पुत्र का अर्थ रक्षा करना है ! पिता मृत्यु के समय अपना सब कुछ पुत्र या पुत्री को सौप देते है ! इसलिए संतान पर पित्रऋण होता है ! श्राद्ध पक्ष पितरो को श्रद्धा सुमन अर्पित करने का होता है !
कैसे करे तर्पण :-
श्राद्ध पक्ष में जल और अन्न से तर्पण करना चाहिए पितर सूक्ष्म शरीर है अर्थात ब्रह्म की ज्योति है पर अभी मुक्त नही हुए है उनका प्राण अपने वंशजो में उलझा हुआ है श्राद्ध पक्ष में जल का अर्ध देने का अर्थ है की जल से ही विश्व जन्म लेता है उसके द्वारा ही जन्म लेता है और फिर उसमे ही लीन हो जाता है ! तर्पण में जल में अन्न मिलकर तर्पण करने का प्रावधान है क्योकि यह शरीर अन्न से अनुप्राणित होता है भक्ति भाव से जब पितरो को जब जल और अन्न द्वारा श्राद्ध पक्ष में तर्पण किया जाता है तब उनकी आत्मा तृप्त होती है और उनका आशीष कुटुम की कल्याण के पाठ पर ले जाता है !