वक्री शनि की शनि ढैय्या से पीड़ित राशियों पर है टेढ़ी नजर, इन दो राशि के जातक रहें सतर्क
शनि वर्तमान में मकर राशि में गोचर हैं और दो राशियों पर शनि ढैय्या और तीन पर शनि साढ़े साती चल रही है। यहां आप जानेंगे शनि ढैय्या से पीड़ित किन राशियों पर शनि देव की टेढ़ी नजर है और बचने के लिए क्या उपाय करें।
शनि वक्री हैं यानी शनि अपनी उल्टी चाल चल रहे हैं। कहते हैं कि शनि की ये चाल खासतौर से शनि साढ़े साती और शनि ढैय्या से पीड़ित जातकों के लिए कष्टदायी मानी जाती है। शनि वर्तमान में मकर राशि में गोचर हैं और दो राशियों पर शनि ढैय्या और तीन पर शनि साढ़े साती चल रही है। यहां आप जानेंगे शनि ढैय्या से पीड़ित किन राशियों पर शनि देव की टेढ़ी नजर है और बचने के लिए क्या उपाय करें।
किन राशियों पर है शनि ढैय्या? शनि मकर राशि में विराजमान हैं। मिथुन और तुला वालों पर शनि ढैय्या चल रही है। इसकी अवधि ढाई वर्ष की होती है। इसका फल भी साढ़ेसाती के अनुसार ही होता है। शनि जब गोचर में जन्मकालीन राशि से चौथे या आठवें भाव में स्थित होता है तबइसे शनि की ‘ढैय्या’ या ‘लघु कल्याणी’ कहा जाता है। शनि जब वक्री अवस्था में चले जाते हैं तो शनि ढैय्या और भी अधिक परेशान करती है।
शनि देव के उपाय
1. शनि देव की प्रतिमा पर सरसों का तेल चढ़ाएं। ध्यान रखें कि शनि देव की कभी भी आंखों में न देखें बल्कि इनके चरणों की तरफ देखकर ही पूजा करें।2. कहते हैं कि दशरथ द्वारा रचित शनि स्तोत्र का पाठ करने से शनि पीड़ा से मुक्ति मिल जाती है।3. शनि देव को प्रसन्न करने के लिए हनुमान जी की अराधना करनी चाहिए।4. किसी ज्योतिष विशेषज्ञ की सलाह से नीलम रत्न की अंगूठी धारण कर सकते हैं।5. चींटियों को आटा डालना चाहिए।6. डाकोत (शनि का दान लेने वाला) को तेल दान करना।7. काले कपड़े में उड़द, लोहा, तेल, काजल रखकर दान करना चाहिए। इसके अलावा शनिवार के दिन शनि से संबंधित कई चीजों का दान कर सकते हैं। 8. काले घोड़े की नाल की अंगूठी मध्यमा अंगुली में धारण करना भी शनि ढैय्या के दौरान शुभ माना जाता है।9. नौकर-चाकर से अच्छा व्यवहार करें। किसी का अपमान न करें।10. छाया दान करें।
शनि देव के मंत्र
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।-ॐ शं शनैश्चराय नमः।-ॐ निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥-ऊँ ह्रिं नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।छाया मार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।– ऊँ शन्नोदेवीर-भिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तुनः।