तिरुपति: पुजारी के मरने के एक साल बाद घर का ताला तोड़ा गया, दो बॉक्स से नकदी और सिक्के मिले
दोस्तों आज के आर्टिकल की शुरुआत से पहले हम आप को भगवान् के इस मंदिर की खासियत बताते है उम्मीद है आप को ये पसंद आएगा
वेंकटेश्वर या बालाजी को भगवान विष्णु अवतार ही है,ऐसा माना जाता है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक सरोवर के किनारे निवास किया था,यह सरोवर तिरुमाला के पास स्थित है,तिरुमाला- तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियाँ, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं ‘सप्तगिरि’ कहलाती हैं,श्री वेंकटेश्वरैया का यह मंदिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है,जो वेंकटाद्री नाम से प्रसिद्ध है.
वहीं एक दूसरी अनुश्रुति के अनुसार,11वीं शताब्दी में संत रामानुज ने तिरुपति की इस सातवीं पहाड़ी पर चढ़ कर गये थे,प्रभु श्रीनिवास (वेंकटेश्वर का दूसरा नाम) उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया,ऐसा माना जाता है कि प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात वे 120 वर्ष की आयु तक जीवित रहे और जगह-जगह घूमकर वेंकटेश्वर भगवान की ख्याति फैलाई. वैकुंठ एकादशी के अवसर पर लोग यहाँ पर प्रभु के दर्शन के लिए आते हैं,जहाँ पर आने के पश्चात उनके सभी पाप धुल जाते हैं,मान्यता है कि यहाँ आने के पश्चात व्यक्ति को जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है.
माना जाता है कि इस मंदिर का इतिहास 9वीं शताब्दी से प्रारंभ होता है,जब काँचीपुरम के शासक वंश पल्लवों ने इस स्थान पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था,परंतु 15 सदी के विजयनगर वंश के शासन के पश्चात भी इस मंदिर की ख्याति सीमित रही,15 सदी के पश्चात इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैलनी शुरू हो गई,1843 से 1933 ई. तक अंग्रेजों के शासन के अंतर्गत इस मंदिर का प्रबंधन हातीरामजी मठ के महंत ने संभाला। हैदराबाद के मठ का भी दान रहा है.
1933 में इस मंदिर का प्रबंधन मद्रास सरकार ने अपने हाथ में ले लिया और एक स्वतंत्र प्रबंधन समिति ‘तिरुमाला-तिरुपति’ के हाथ में इस मंदिर का प्रबंधन सौंप दिया,आंध्रप्रदेश के राज्य बनने के पश्चात इस समिति का पुनर्गठन हुआ और एक प्रशासनिक अधिकारी को आंध्रप्रदेश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया.
श्री वेंकटेश्वर का यह पवित्र व प्राचीन मंदिर पर्वत की वेंकटाद्रि नामक सातवीं चोटी पर स्थित है,जो श्री स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे स्थित है,इसी कारण यहाँ पर बालाजी को भगवान वेंकटेश्वर के नाम से जाना जाता है,यह भारत के उन चुनिंदा मंदिरों में से एक है,जिसके पट सभी धर्मानुयायियों के लिए खुले हुए हैं,पुराण व अल्वर के लेख जैसे प्राचीन साहित्य स्रोतों के अनुसार कलियुग में भगवान वेंकटेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात ही मुक्ति संभव है,पचास हजार से भी अधिक श्रद्धालु इस मंदिर में प्रतिदिन दर्शन के लिए आते हैं,इन तीर्थयात्रियों की देखरेख पूर्णतः टीटीडी के संरक्षण में है.
श्री वैंकटेश्वर का यह प्राचीन मंदिर तिरुपति पहाड़ की सातवीं चोटी (वैंकटचला) पर स्थित है,यह श्री स्वामी पुष्करिणी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है,माना जाता है कि वेंकट पहाड़ी का स्वामी होने के कारण ही इन्हें वैंकटेश्वर कहा जाने लगा,इन्हें सात पहाड़ों का भगवान भी कहा जाता है,मंदिर के गर्भगृह में भगवान वैंकटेश्चर साक्षत विराजमान है,यह मुख्य मंदिर के प्रांगण में है,मंदिर परिसर में अति सुंदरता से बनाए गए अनेक द्वार, मंडपम और छोटे मंदिर हैं,मंदिर परिसर में मुख्य दर्शनीय स्थल हैं:पडी कवली महाद्वार संपंग प्रदक्षिणम,कृष्ण देवर्या मंडपम, रंग मंडपम तिरुमला राय मंडपम, आईना महल, ध्वजस्तंभ मंडपम, नदिमी पडी कविली, विमान प्रदक्षिणम,श्री वरदराजस्वामी श्राइन पोटु आदि.
कहा जाता है कि इस मंदिर की उत्पत्ति वैष्णव संप्रदाय से हुई है,यह संप्रदाय समानता और प्रेम के सिद्धांत को मानता है,इस मंदिर की महिमा का वर्णन विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में मिलता है,माना जाता है कि भगवान वैंकटेश्वर का दर्शन करने वाले हरेक व्यक्ति को उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है,हालांकि दर्शन करने वाले भक्तों के लिए यहां विभिन्न जगहों तथा बैंकों से एक विशेष पर्ची कटती है,इसी पर्ची के माध्यम से आप यहां भगवान वैंकटेश्वर के दर्शन कर सकते है.