ऐसी हालत में कोई युवा 1 घंटा नहीं जी सकता, फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह 12 घंटे जिंदगी की जंग लड़ते रहे, डॉक्टर हैरान
ये तस्वीर दुनियाभर में फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर पद्मश्री मिल्खा सिंह के निधन से 24 मिनट पहले की है। कोरोना से उबरने के बाद दोबारा बीमार हुए मिल्खा सिंह ने शुक्रवार देर रात 11:24 बजे अंतिम सांस ली। इससे पहले उन्हें 16 जून को रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद PGI के एडवांस कार्डियक सेंटर भर्ती कराया गया था। यहां उनकी हालात स्थिर बनी हुई थी।
17 जून को उन्हें बुखार आया। 18 जून की सुबह ऑक्सीजन लेवल गिर गया। शाम 4 बजे ऑक्सीजन सेचुरेशन 80 से 70 रह गया। ब्लड प्रेशर लेवल 70/30 हो गया। शाम 6 बजे BP और गिर गया। रात 11 बजे ब्लड प्रेशर लेवल 39/20 रह गया था। डॉक्टरों का कहना है कि उनके फेफड़े 80% डैमेज हो गए थे।
अंतिम सांस तक मौत से लड़ाई लड़ी: डॉक्टर
मिल्खा सिंह को बुधवार से ही सांस लेने में बहुत ज्यादा दिक्कत हो रही थी। उनकी मौत की वजह भी यही रही। डॉक्टर के मुताबिक ऐसी हालत में कोई युवा भी एक घंटा जीवित नहीं रह सकता, लेकिन दिग्गज धावक ने अंतिम सांस तक मौत से लड़ाई लड़ी।
कोरोना वैक्सीन नहीं लगवाई थी, कहते थे- अब जरूरत नहीं
मिल्खा सिंह का इलाज कर रहे डॉक्टर ने बताया कि सुबह तक वे बात कर रहे थे। डॉक्टर ने उनसे नाश्ता करने को कहा तो उन्होंने डॉक्टर से कहा कि पहले तुम भी चाय-कॉफी पी लो। उनकी बेटी के साथ आए परिवार के ड्राइवर ने बताया कि बाबू जी को घर के लोग वैक्सीन लगवाने को कहते थे, लेकिन वे लगवाने से इंकार कर देते थे। कहते थे, अब जरूरत नहीं है।
कई रिकॉर्ड बनाने वाले मिल्खा सिंह 91 साल की उम्र में इस दुनिया से कूच कर गए। 90 साल की उम्र के बाद भी उनका फिटनेस के प्रति जुनून कम नहीं हुआ था। उनके लिए फिटनेस क्या मायने रखती थी, इसे उन्होंने एक कार्यक्रम के दौरान साझा किया था। उन्होंने कहा था कि बदलाव फिटनेस से ही आएगा। मैं जो चल-फिर पा रहा हूं, वह केवल फिजिकल फिटनेस की वजह से ही हो पाया है।
मिल्खा ने कहा था कि मैं लोगों से कहता हूं कम खाओ, क्योंकि सारी बीमारी पेट से ही शुरू होती हैं। मेरी राय है कि चार रोटी की भूख है तो दो खाइए। जितना पेट खाली रहेगा आप ठीक रहेंगे। इसके बाद मैं चाहूंगा कि 24 घंटे में से 10 मिनट के लिए खेल के मैदान में जाना बहुत जरूरी है।
उन्होंने कहा था- पार्क हो, सड़क हो…जाइए और दस मिनट तेज वॉक कीजिए, थोड़ा कूद लीजिए, हाथ-पैर चला लीजिए। खून शरीर में तेजी से बहेगा तो बीमारियों को भी बहा देगा। आपको मेरी तरह कभी डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं होगी। सेहत के लिए दस मिनट निकलना बेहद जरूरी है।
‘मेरे जमाने में 3 स्पोर्ट्समैन हुए। मैं, लाला अमरनाथ और मेजर ध्यानचंद जी थे। एक दिन नेशनल स्टेडियम के अंदर लाला अमरनाथ जी से मेरी बातें हो रही थीं। उन्होंने मुझे बताया कि मैच खेलने के लिए उन्हें दो रुपए मिलते हैं और थर्ड क्लास में उन्हें सफर करना होता है। अब हालात कितने बदल गए हैं। विराट कोहली के पास इतना पैसा, धोनी के पास इतनी दौलत है, सचिन कितने अमीर हैं, लेकिन तब इतना पैसा नहीं मिलता था। ध्यानचंद जी जैसा हॉकी प्लेयर आज तक दुनिया में पैदा नहीं हुआ। जब वे 1936 के बर्लिन ओलिंपिक में खेल रहे थे तो हिटलर ने उनसे कहा था कि ध्यानचंद आप यहां रह जाइए, आपको जो चाहिए हम देंगे, लेकिन ध्यानचंद जी ने कहा था नहीं, मुझे अपना देश प्यारा है, मुझे वापस जाना है। 1958 कॉमनवेल्थ गेम्स में जब मैंने पहला गोल्ड मैडल जीता, तो क्वीन ने मुझे गोल्ड मेडल पहनाया। स्टेडियम में करीब एक लाख अंग्रेज बैठे थे, भारतीय गिने-चुने ही थे। क्वीन जैसे ही गोल्ड मेडल पहनाकर गईं, तो एक साड़ी वाली औरत जो क्वीन के साथ ही बैठी थीं, दौड़ती हुई मेरे पास आई और बोली- मिल्खा जी…पंडित जी (जवाहरलाल नेहरू) का मैसेज आया है और उन्होंने कहा है कि मिल्खा से पूछो कि उन्हें क्या चाहिए।
आपको मालूम है मिल्खा सिंह ने उस दिन क्या मांगा था? सिर्फ एक दिन की छुट्टी। मैं पंडित जी से कुछ भी मांगता तो मिल जाता। लेकिन मांगने में शर्म का भाव आता है। तब मेरी तनख्वाह 39 रुपए 8 आने थी। सेना में मैं सिपाही था। उसी में हम गुजारा किया करते थे। आज इतना पैसा आ गया है खेल में, इतने लेटेस्ट इक्विपमेंट आ गए हैं, इतने स्टेडियम बन गए हैं, मगर मुझे दुख इस बात का है कि 1960 में जो मिल्खा सिंह ने रिकॉर्ड बनाया था, वहां तक आज तक कोई भारतीय खिलाड़ी नहीं पहुंच सका है। मुझे इस बात की तकलीफ है। आगे बढ़ो…सब कुछ है हमारे पास।
ओलिंपिक में मैडल जीतना अलग स्तर का काम है। वहां पर 220-230 देशों के खिलाड़ी आते हैं और अपनी पूरी तैयारी करके आते हैं। जोर लगाकर आते हैं कि हमें स्विमिंग में मेडल जीतना है, फुटबॉल में मेडल जीतना है, हॉकी में मेडल जीतना है। एथलेटिक दुनिया में नंबर वन गेम मानी जाती है। उसमें जो मैडल ले जाता है उसे दुनिया मानती है। उसेन बोल्ट को पूरी दुनिया जानती है और कहती है कि जमैका का खिलाड़ी है। भारत की आजादी के बाद से केवल 5-6 खिलाड़ी फाइनल तक पहुंचे हैं, लेकिन मेडल नहीं ले पाए। मैं भी उनमें से एक हूं। जब कोई वहां से मेडल लेकर आएगा तब मैं मानूंगा कि बदलाव हुआ है।’