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मुख्यमंत्री श्री बघेल ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों कोे भेजा ’राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव’ का आमंत्रण : राज्यों के श्रेष्ठ जनजातीय नृत्य दलों को नृत्य महोत्सव में भेजने का आग्रह

रायपुर: मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों को राजधानी रायपुर में आगामी दिसम्बर माह में आयोजित किए जा रहे राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में शामिल होने का आमंत्रण दिया है। मुख्यमंत्री श्री बघेल ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र भेजकर आमंत्रित किया है।
श्री बघेल ने अपने पत्र में लिखा है कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आगामी 27, 28 एवं 29 दिसम्बर 2019 को राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का पहली बार आयोजन किया जा रहा है। इस आयोजन में देश के विभिन्न राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों के जनजातीय समूहों को भागीदारी के लिए तथा पड़ोसी देशों के अंतर्राष्ट्रीय कलाकारों को प्रस्तुति के लिए आमंत्रित किया गया है। श्री बघेल ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों से उनके राज्य के श्रेष्ठ जनजातीय नृत्य दलों को इस नृत्य महोत्सव में भेजने और इस आयोजन में उनकी स्वयं की गरिमामय उपस्थिति का आग्रह किया है।

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मुख्यमंत्री ने पत्र में छत्तीसगढ़ की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए लिखा है कि जनजातीय बहुल छत्तीसगढ़ राज्य आदिवासी संस्कृति से जीवंत है, जिसे प्रकृति का भी अनूठा उपहार मिला है। यहां प्राकृतिक संसाधनों और जैव विविधता की संपन्नता है, वहीं यह राज्य संस्कृति की दृष्टि से भी समृद्ध है। यहां के पहनावा, रहन-सहन, खानपान और भाषा-बोली की विविधता में राज्य की बहुरंगी संस्कृति झलकती है, जिसका महत्वपूर्ण भाग यहां के जनजातीय समुदाय के सदस्य हैं।

श्री बघेल ने प्रदेश की जीवनदायनी पावन नदियों का उल्लेख करते हुए लिखा है कि छत्तीसगढ़ को महानदी, शिवनाथ, हसदेव, अरपा, केलो, रेण, महान, इंद्रावती, शबरी जैसी नदियों का वरदान मिला है। हम धान के कटोरा के रूप में पहचाने जाने के साथ दलहन-तिलहन उपजाते कृषक संस्कृति का सम्मान करने वाले प्रदेश हैं। प्रकृति ने हमें लोहा, कोयला, चूना पत्थर, एल्युमिनियम, टिन जैसे खनिज भंडार से संपन्न बनाया है, वहीं हमारी प्राचीन पंरपरा और विरासत में यह राम वनगमन का मार्ग और माता कौशल्या की पवित्र भूमि है।

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छत्तीसगढ़ में गुफावासी आदिमानव के अलावा सिरपुर, राजिम, शिवरीनारायण, खरौद, दंतेवाड़ा, बारसूर, डीपाडीह, महेशपुर, भोरमदेव जैसे प्राचीन स्मारक हैं, जो भारतीय स्थापत्य कला में अपना विशेष स्थान रखते हैं। यह बाबा गुरू घासीदास, वीर नारायण सिंह की जन्म एवं कर्मभूमि है तथा यहां के लोग संत कबीर साहब की परंपरा से प्रेरित हैं। करमा, सुआ, गौर, ककसाड़, सैला, सरहुल जैसी नृत्य विधाएं राज्य की बहुरंगी आदिवासी संस्कृति के आयाम हैं। छत्तीसगढ़ राज्य ने ’गढ़बो नवा छत्तीसगढ़’ संकल्प के साथ विकास के लिए नए प्रतिमान गढ़ना आरंभ किया है।

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One Comment

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