India Hindi News

स्वर्गीय श्री तरुण सागर जी के अंतिम यात्रा की बोली जानकर चौंक जाएंगे आप, फोटो पर क्लिक करे देखें…

कड़वे प्रवचनों के लिए विख्यात दिगंबर जैन मुनि तरुण सागर महाराज के निधन से जैन समाज में शोक की लहर छा गई। मुनि तरुण सागर एकमात्र संत थे, जिन्होंने लालकिले से प्रवचन दिए। देश की कई विधानसभा, मुख्यमंत्री आवास, अनेक राजनेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों के निवास पर प्रवचन दिए। सेंट्रल जेल, आरएसएस और सेना तक में प्रवचन किए।

स्वर्गीय श्री तरुण सागर जी के अंतिम यात्रा की बोली

अचानक देवगमन के बाद जैन समुदाय के 5 लोगों की टीम (डाक्टर, बिल्डर एवं 3 व्यसायी) ने 11 करोड़ की बोली लगाई है ताकि मुनि की अंत्येष्टि की जा सके। यह पहली दफा नहीं हुआ है कि जब जैन मुनि की अंतिम यात्रा पर इतनी भारी रकम खर्च की गयी हो किंतु इस 11 करोड़ की रकम ने पिछले सारे रिकार्ड तोड़ दिये हैं। बता दें कि प्रतिष्ठित जैन मुनियों की अंतिम यात्रा का हिस्सा बनने को जैन समुदाय के लोग अपनी बड़ी उपलब्धि मानते हैं।

चिता जलाने के अलावा दूसरे रीति-रिवाजों के लिए भी बोली लगाई जाती है। इस बोली से एकत्रित पैसे का इस्तेमाल धार्मिक एवं सामाजिक कायरे में किया जाता है। ज्ञातव्य हो कि मुम्बई के वाल्केर स्थित बाबू पन्नालाल जैन मंदिर में बाली लगाने का कार्यक्रम आयोजित हुआ, जो करीब तीन घंटे तक चला। 5 लोगों की एक टीम ने मिलकर 11 करोड़ 11 लाख 11 हजार 1 सौ 11 रुपये एकत्रित किये। मुनिश्री को सैकड़ों लोगों की भीड़ के बीच पालकी में रखकर पंचशील प्लाजा बिल्डिंग के पीछे मैदान ले जाया गया, जहां उनका सायं 04.30 बजे अंतिम संस्कार किया गया, जिसमें 300 कि.ग्रा. चंदन की लकड़ियों का इस्तेमाल किया गया।

चादर की बोली 52,94000
मुहपति की बोली 21,94,194 rs.
(Left कंधा आगे वाला) लगाने की बोली 32,00,000
(Right कंधा आगे वाला) लगाने की बोली 21,21,111
(Left कंधा पीछे वाला) 22,00,000
(Right कंधा पीछे वाला) 22,00,000
गुलाल उछाल की बोली 41,00,000
सिक्के उछाल की बोली सोना चांदी आदि 21,00,000

जैन मुनि तरुण सागर का असली नाम कभी पवन कुमार जैन था। इनका जन्म मध्य प्रदेश के दमोह जिले में 26 जून 1967 को हुआ था। इनके माता-पिता का नाम श्रीमती शांतिबाई जैन और प्रताप चन्द्र जैन था। कहा जाता है कि 14 साल की उम्र में ही इन्होंने घर-बार छोड़ दिया था। ये 8 मार्च 1981 को घर छोड़ संन्यास जीवन में आ गए थे। इनकी शिक्षा-दीक्षा छत्तीसगढ़ में हुई है। संन्यास लेने के बाद तीन बार अपने गांव आए थे।

पवन कुमार जैन से मुनि तरुण सागर महाराज तक 

बचपन का नाम- पवन कुमार जैन
जन्म तिथि- 26 जून, 1967, ग्राम गुहजी, जिला दमोह मध्यप्रदेश
माता- महिलारत्न श्रीमती शांतिबाई जैन
पिता- श्रेष्ठ श्रावक श्री प्रताप चन्द्र जी जैन
लौकिक शिक्षा- माध्यमिक शाला तक
गृहत्याग- 8 मार्च, 1981
छुल्लक दीक्षा- 18 जनवरी , 1982, अकलतरा ( छत्तीसगढ़) में
मुनि दीक्षा- 20 जुलाई, 1988, बागीदौरा (राजस्थान)
दीक्षा- गुरु आचार्य पुष्पदंत सागर जी मुनि

क्रांतिकारी संत कहलाते थे : अपने प्रवचनों के वजह से वे ‘क्रांतिकारी संत’ कहलाते थे। 6 फरवरी 2002 को इन्हें मध्य प्रदेश शासन द्वारा ‘राजकीय अतिथि’ का दर्जा मिला। इसके बाद 2 मार्च 2003 को गुजरात सरकार ने भी उन्हें ‘राजकीय अतिथि’ के सम्मान से नवाजा। जैन धर्म में ही नहीं उनके शिष्यों की संख्या दूसरे समुदायों में भी काफी है। 20 जुलाई 1988 को राजस्थान के बागीडोरा में 20 वर्ष की उम्र में उनके गुरु पुष्पदंत सागर ने उन्हें दिगंबर संत की उपाधि दे दी।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button